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सनातन : अनवरत रूपांतरण - अपरिवर्तनीय सत्य की खोज में

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  सनातन स्वयं सत्य नहीं , पर सत्य की निरंतर यात्रा है — एक रूपांतरणशील संस्कृति जो अदृश्य सत्य की खोज में , युगों से स्वयं को नवीनता की दिशा में बदलती रही है। Art @ Vijay Vijan  नामों से पूर्व जो है वही सनातन जीवन में कुछ अर्धसत्य गरजते हैं , कुछ फुसफुसाते हैं — सनातन   न गरजता है , न चुप रहता है। वह न घोषणा करता है , न गायब होता है। वह है — सभी संज्ञाओं से पहले , रूपों के बाहर , और समस्त पहचान की सीमाओं से परे। सनातन की खोज किसी नवीन वस्तु को पाने की यात्रा नहीं है , बल्कि उस तत्व को पहचानने की प्रक्रिया है जो कभी अनुपस्थित ही नहीं था। यह सत्य प्रमाण नहीं माँगता। यह न तो मंदिरों में स्थान की याचना करता है , न ही शास्त्रों की पुष्टियों में समाहित होता है। वह तो उन सबका आधार ( adhāra ) है। सनातन को सनातन इसलिए नहीं कहा गया क्योंकि वह कालातीत है , बल्कि इसलिए कि वह काल के परे है — नित्य होते हुए भी नवीन रूपों में निरंतर अभिव्यक्त होता है। यही उसका मौन चमत्कार है: अदृश्य , दृश्य बनता रहता है ; अनगाया , स्वयं में गान हो उठता है ; और सत्य ,...